क्या 20 साल बाद किराएदार का हो जाएगा मकान, जानिये सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम फैसला supreme court

By Meera Sharma

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supreme court: आज के महंगाई के दौर में अधिकतर लोग अपनी अतिरिक्त संपत्ति को किराए पर देकर अच्छी खासी आमदनी कर रहे हैं। यह एक लाभदायक साइड बिजनेस बन गया है जिससे मासिक आय बढ़ाई जा सकती है। शहरों में बढ़ती जनसंख्या और रोजगार के अवसरों के कारण किराए की मांग लगातार बढ़ रही है। लेकिन इस आकर्षक कमाई के साथ-साथ संपत्ति मालिकों के मन में एक डर भी बना रहता है।

यह डर इस बात को लेकर है कि कहीं लंबे समय तक किराए पर देने से किराएदार ही संपत्ति का मालिक न बन जाए। विशेष रूप से जब किराएदार 15-20 साल या इससे अधिक समय तक एक ही संपत्ति में रहता है। इस चिंता का आधार कानूनी भी है क्योंकि भारतीय कानून में “प्रतिकूल कब्जा” जैसे नियम मौजूद हैं जो इस स्थिति को और भी जटिल बनाते हैं।

प्रतिकूल कब्जे का कानूनी सिद्धांत

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प्रतिकूल कब्जा या “एडवर्स पजेशन” भारतीय संपत्ति कानून का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस कानूनी सिद्धांत के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति पर निरंतर 12 वर्षों तक कब्जा बनाए रखता है तो वह उस संपत्ति पर मालिकाना हक का दावा कर सकता है। यह नियम ट्रांसफर ऑफ प्रोपर्टी एक्ट में स्पष्ट रूप से वर्णित है और इसका उद्देश्य उन संपत्तियों का उपयोग सुनिश्चित करना है जो बेकार पड़ी रहती हैं।

इस कानून के तहत यदि असली मालिक 12 साल तक अपनी संपत्ति पर कोई दावा नहीं करता या उसे वापस लेने का प्रयास नहीं करता, तो कब्जाधारी को कानूनी मालिकाना हक मिल सकता है। यह समय सीमा निजी संपत्ति के लिए 12 साल और सरकारी संपत्ति के लिए 30 साल निर्धारित की गई है। लेकिन यह स्थिति तभी लागू होती है जब कुछ विशेष शर्तें पूरी हों।

सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने लिमिटेशन एक्ट 1963 के तहत एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जो संपत्ति मालिकों और किराएदारों दोनों के लिए स्पष्टता लाता है। न्यायालय ने अपने फैसले में कहा है कि प्रतिकूल कब्जे का सिद्धांत तभी लागू होता है जब कब्जा असली मालिक की जानकारी या सहमति के बिना हो। यदि मालिक अपनी सहमति से किसी को संपत्ति का उपयोग करने दे रहा है तो यह प्रतिकूल कब्जा नहीं माना जाएगा।

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि केवल समय बीतने से ही किराएदार को संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिल जाता। इसके लिए कब्जाधारी को यह सिद्ध करना होगा कि उसका कब्जा मालिक की इच्छा के विरुद्ध था और वह संपत्ति पर अपना हक जताता रहा है। यह फैसला उन संपत्ति मालिकों के लिए राहत की बात है जो किराएदारी के व्यवसाय में हैं।

किराएदारी और प्रतिकूल कब्जे में अंतर

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किराएदारी और प्रतिकूल कब्जे के बीच मूलभूत अंतर यह है कि किराएदारी में संपत्ति का उपयोग मालिक की सहमति से होता है। किराएदार केवल संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार रखता है, मालिकाना हक नहीं। वह मालिक की अनुमति से वहां रह रहा है और इसके बदले में किराया भी देता है। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए फायदेमंद होती है।

दूसरी ओर प्रतिकूल कब्जे में व्यक्ति मालिक की सहमति के बिना संपत्ति पर कब्जा करता है और खुद को मालिक बताता है। वह मालिक के अधिकारों को चुनौती देता है और संपत्ति पर अपना हक जताता है। इसमें किसी प्रकार की अनुमति या किराया शामिल नहीं होता। यही कारण है कि सामान्य किराएदारी में प्रतिकूल कब्जे के नियम लागू नहीं होते।

रेंट एग्रीमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका

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संपत्ति मालिकों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय है एक उचित रेंट एग्रीमेंट बनवाना। यह कानूनी दस्तावेज स्पष्ट रूप से बताता है कि संपत्ति का उपयोग मालिक की सहमति से हो रहा है और किराएदार केवल निर्धारित शर्तों के तहत वहां रह रहा है। रेंट एग्रीमेंट में किराए की राशि, अवधि, और दोनों पक्षों के अधिकारों का स्पष्ट उल्लेख होता है।

यह दस्तावेज इस बात का पक्का प्रमाण है कि मालिक अपनी संपत्ति के बारे में जानता है और उसने स्वेच्छा से इसे किराए पर दिया है। रेंट एग्रीमेंट के होने से किराएदार कभी भी प्रतिकूल कब्जे का दावा नहीं कर सकता। यहां तक कि 20-30 साल बाद भी यह दस्तावेज मालिक के अधिकारों की रक्षा करता रहेगा। इसलिए हर संपत्ति मालिक को रेंट एग्रीमेंट जरूर बनवाना चाहिए।

किराएदारों के अधिकार और सीमाएं

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किराएदारों के भी कुछ कानूनी अधिकार होते हैं लेकिन ये अधिकार संपत्ति के मालिकाना हक तक नहीं पहुंचते। किराएदार को शांतिपूर्ण तरीके से संपत्ति का उपयोग करने का अधिकार है और मालिक बिना उचित कारण के उसे बेदखल नहीं कर सकता। किराएदार को उचित नोटिस देकर ही संपत्ति खाली करने को कहा जा सकता है। इसके अलावा किराएदार संपत्ति में आवश्यक मरम्मत की मांग भी कर सकता है।

लेकिन इन अधिकारों के बावजूद भी किराएदार कभी भी संपत्ति का मालिक नहीं बन सकता जब तक कि वह प्रतिकूल कब्जे की सभी शर्तों को पूरा न करे। सामान्य किराएदारी में यह संभव नहीं है क्योंकि यहां मालिक की सहमति मौजूद होती है। किराएदार को हमेशा यह याद रखना चाहिए कि वह केवल अस्थायी उपयोगकर्ता है, मालिक नहीं।

संपत्ति मालिकों के लिए सुरक्षा उपाय

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संपत्ति मालिकों को अपनी संपत्ति की सुरक्षा के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए। सबसे पहले हमेशा लिखित रेंट एग्रीमेंट बनवाएं और इसे रजिस्टर भी कराएं। समय-समय पर अपनी संपत्ति का निरीक्षण करते रहें और किराएदार से संपर्क बनाए रखें। किराया नियमित रूप से लेते रहें और इसकी रसीद जरूर दें।

संपत्ति के सभी कानूनी कागजात अपने पास सुरक्षित रखें और समय-समय पर इन्हें अपडेट करवाते रहें। यदि किराएदार कोई असामान्य व्यवहार करे या संपत्ति पर अपना हक जताने की कोशिश करे तो तुरंत कानूनी सलाह लें। नियमित रूप से प्रॉपर्टी टैक्स भरते रहें क्योंकि यह भी मालिकाना हक का प्रमाण है। इन सभी उपायों से आप अपनी संपत्ति को पूर्ण सुरक्षा दे सकते हैं।

Disclaimer

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यह लेख केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है और इसे कानूनी सलाह नहीं माना जाना चाहिए। संपत्ति संबंधी कानून जटिल होते हैं और राज्य के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। किसी भी कानूनी मामले में निर्णय लेने से पहले योग्य वकील से सलाह अवश्य लें। लेखक या प्रकाशक किसी भी प्रकार की हानि के लिए जिम्मेदार नहीं है।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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