Property Right: भारतीय कानून व्यवस्था में संपत्ति के अधिकारों को लेकर विस्तृत प्रावधान किए गए हैं लेकिन अधिकतर लोग यह नहीं जानते कि इन अधिकारों को हासिल करने के लिए एक निर्धारित समय सीमा भी होती है। विशेष रूप से पैतृक संपत्ति के मामले में यह भ्रम आम है कि एक बार अधिकार मिल गया तो वह हमेशा के लिए है। यह धारणा पूर्णतः गलत है क्योंकि कानून में स्पष्ट रूप से समय सीमा निर्धारित की गई है।
संपत्ति संबंधी विवादों में देरी से दावा करना सबसे बड़ी गलती हो सकती है। कई परिवारों में यह देखा गया है कि वर्षों तक आपसी समझौते की उम्मीद में लोग कानूनी कार्रवाई में देरी करते रहते हैं। जब तक वे अदालत का दरवाजा खटखटाते हैं तब तक कानूनी समय सीमा समाप्त हो चुकी होती है। इसलिए संपत्ति के मामलों में समय की महत्वता को समझना और उसके अनुसार कार्य करना अत्यंत आवश्यक है।
बारह वर्ष की निर्धारित समय सीमा
पैतृक संपत्ति पर दावा करने के लिए कानून में 12 वर्ष की स्पष्ट समय सीमा निर्धारित की गई है। यह समय सीमा उस दिन से शुरू होती है जब व्यक्ति को पता चलता है कि उसे संपत्ति के अधिकार से वंचित किया जा रहा है। यदि कोई व्यक्ति इस 12 साल की अवधि के भीतर अदालत में अपना दावा प्रस्तुत नहीं करता तो उसका अधिकार समाप्त हो जाता है।
यह समय सीमा भारतीय सीमा अधिनियम के तहत निर्धारित की गई है और इसका मुख्य उद्देश्य यह है कि संपत्ति संबंधी विवाद अनंत काल तक न चलते रहें। कानून का मानना है कि यदि कोई व्यक्ति वास्तव में अपने अधिकार के प्रति गंभीर है तो वह उचित समय के भीतर अपना दावा प्रस्तुत करेगा। इस समय सीमा के बाद केवल असाधारण परिस्थितियों में ही न्यायालय कोई सुनवाई कर सकता है।
गलत वसीयत के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई
कई बार पारिवारिक विवादों में एक पक्ष गलत या फर्जी वसीयत बनाकर दूसरे पक्ष को संपत्ति से वंचित करने का प्रयास करता है। ऐसी स्थिति में भी 12 साल की समय सीमा लागू होती है। यदि किसी को लगता है कि वसीयत में हेराफेरी की गई है या उसे जानबूझकर संपत्ति से वंचित किया गया है तो उसे तुरंत कानूनी कार्रवाई शुरू करनी चाहिए।
वसीयत संबंधी मामलों में यह साबित करना होता है कि वसीयत वैध नहीं है या इसमें धोखाधड़ी हुई है। इसके लिए पर्याप्त सबूत और गवाह चाहिए होते हैं। समय के साथ सबूत नष्ट हो जाते हैं और गवाह भी मिलना मुश्किल हो जाता है। इसलिए जितनी जल्दी कानूनी कार्रवाई शुरू की जाए उतना ही बेहतर होता है। देरी से की गई कार्रवाई में सफलता की संभावना कम हो जाती है।
पैतृक संपत्ति से बेदखली की स्थितियां
पैतृक संपत्ति की प्रकृति ऐसी होती है कि इससे किसी को आसानी से बेदखल नहीं किया जा सकता। यह संयुक्त परिवार की संयुक्त संपत्ति होती है जिसमें सभी सदस्यों का जन्मसिद्ध अधिकार होता है। माता-पिता भी अपनी इच्छा से किसी को इस संपत्ति से वंचित नहीं कर सकते। हालांकि कुछ विशेष परिस्थितियों में न्यायालय ने बेदखली के फैसले सुनाए हैं।
ये विशेष परिस्थितियां तब बनती हैं जब संतान अपने माता-पिता के साथ दुर्व्यवहार करती है, उनकी देखभाल नहीं करती या पारिवारिक मर्यादाओं का उल्लंघन करती है। लेकिन ऐसे मामले बहुत दुर्लभ होते हैं और न्यायालय बहुत सावधानी से इन पर विचार करता है। सामान्यतः पैतृक संपत्ति में प्रत्येक वारिस का अधिकार सुरक्षित रहता है और इसे छीना नहीं जा सकता।
पैतृक और स्वअर्जित संपत्ति में अंतर
बहुत से लोग पैतृक संपत्ति और पिता की स्वअर्जित संपत्ति के बीच अंतर नहीं समझ पाते। पैतृक संपत्ति वह होती है जो कम से कम चार पीढ़ियों से परिवार में चली आ रही हो और जिसका कभी बंटवारा न हुआ हो। यह संपत्ति पिता, दादा और परदादा से होते हुए आई हो और इन चार पीढ़ियों में कहीं भी इसका विभाजन न हुआ हो।
स्वअर्जित संपत्ति वह होती है जिसे व्यक्ति ने अपनी मेहनत और कमाई से खरीदा या बनाया है। इसमें पिता का पूर्ण अधिकार होता है और वह चाहे तो अपनी संतान को इससे वंचित कर सकता है। यदि पैतृक संपत्ति का एक बार बंटवारा हो जाता है तो वह स्वअर्जित संपत्ति बन जाती है। इस अंतर को समझना इसलिए जरूरी है कि दोनों के कानूनी नियम अलग होते हैं।
विरासत की संपत्ति की जटिलताएं
विरासत में मिली हर संपत्ति पैतृक संपत्ति नहीं होती। यदि दादा ने अपनी संपत्ति का बंटवारा करके पिता को कुछ हिस्सा दिया था तो वह पिता की स्वअर्जित संपत्ति बन जाती है। इस स्थिति में पिता उस संपत्ति को अपनी इच्छानुसार किसी को भी दे सकता है या वसीयत में किसी को वंचित भी कर सकता है।
यह स्थिति कई पारिवारिक विवादों का कारण बनती है क्योंकि लोग समझते हैं कि पुरखों से आई हर संपत्ति में उनका अधिकार है। लेकिन कानूनी रूप से यह सही नहीं है। संपत्ति का इतिहास और उसके बंटवारे का रिकॉर्ड देखना जरूरी होता है। केवल वही संपत्ति पैतृक मानी जाती है जो निरंतर चार पीढ़ियों तक अविभाजित रही हो।
समय सीमा के बाद के विकल्प
यदि 12 साल की समय सीमा समाप्त हो गई है तो भी कुछ असाधारण परिस्थितियों में न्यायालय सुनवाई कर सकता है। इसके लिए यह साबित करना होगा कि देरी के पीछे कोई वाजिब कारण था। जैसे कि व्यक्ति को संपत्ति के अस्तित्व का पता ही नहीं था, वह नाबालिग था, मानसिक रूप से अस्वस्थ था या किसी धोखाधड़ी का शिकार था।
न्यायालय ऐसे मामलों में बहुत सख्ती से जांच करता है और पर्याप्त सबूत मांगता है। यदि देरी का कारण संतोषजनक नहीं है तो मामला खारिज हो जाता है। इसलिए बेहतर यही है कि समय रहते अपने अधिकारों के लिए कानूनी कार्रवाई शुरू की जाए। देरी करने से न केवल मामला कमजोर होता है बल्कि कई बार पूरी तरह से हाथ से निकल भी जाता है।
कानूनी सलाह की आवश्यकता
संपत्ति के मामले बहुत जटिल होते हैं और इनमें कई कानूनी बारीकियां होती हैं। प्रत्येक मामले की अपनी विशेषताएं होती हैं और सामान्य नियम हमेशा लागू नहीं होते। इसलिए किसी भी संपत्ति विवाद में कानूनी सलाह लेना आवश्यक है। एक अनुभवी वकील आपकी स्थिति का सही आकलन कर सकता है और उचित रणनीति बना सकता है।
देरी करना सबसे बड़ी भूल हो सकती है इसलिए जैसे ही संपत्ति को लेकर कोई विवाद उत्पन्न हो, तुरंत कानूनी सलाह लें। समय के साथ स्थिति और जटिल होती जाती है और समाधान मुश्किल हो जाता है। सही समय पर उठाया गया कदम न केवल आपके अधिकारों की रक्षा करता है बल्कि पारिवारिक रिश्तों को भी बिगड़ने से बचाता है।
Disclaimer
यह लेख सामान्य कानूनी जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है और इसे व्यक्तिगत कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। संपत्ति कानून जटिल विषय है और प्रत्येक मामले की अपनी विशेषताएं होती हैं। किसी भी संपत्ति संबंधी निर्णय लेने से पहले योग्य वकील से विस्तृत सलाह अवश्य लें। समय सीमा और अन्य कानूनी प्रावधान राज्य के अनुसार भिन्न हो सकते हैं।