गोद लिए बच्चे का पिता की संपत्ति में कितना अधिकार, हाईकोर्ट ने अपने फैसले में किया साफ father’s property

By Meera Sharma

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father's property

father’s property: भारतीय समाज में दत्तक ग्रहण या गोद लेने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। कई ऐसे माता-पिता होते हैं जो विभिन्न कारणों से किसी बच्चे को गोद ले लेते हैं और उसकी देखभाल अपनी जैविक संतान की तरह ही करते हैं। इन परिस्थितियों में एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि क्या गोद लिए गए बच्चे का पिता की संपत्ति पर वैसा ही अधिकार होता है जैसा कि जैविक संतान का होता है। यह मुद्दा न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत संवेदनशील है।

हाल ही में इसी विषय पर एक महत्वपूर्ण मामला हाई कोर्ट के समक्ष आया जिसमें गोद लिए गए बच्चे के संपत्ति अधिकारों को लेकर स्पष्टता प्रदान की गई है। इस निर्णय ने न केवल कानूनी दुविधा को सुलझाया है बल्कि समाज में दत्तक पुत्रों की स्थिति को भी मजबूत किया है। यह फैसला उन सभी परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन का काम करेगा जो गोद लेने की प्रक्रिया से जुड़े हुए हैं।

मामले की पूरी कहानी और पारिवारिक विवाद

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इस केस में मुख्य व्यक्ति जगदीश था, जिसे उसके मामा ने गोद लिया था। जब जगदीश के मामा यानी उसके दत्तक पिता की मृत्यु हो गई, तब उसकी मौसियों ने उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम 1953 की धारा 12 के अंतर्गत कोर्ट में आवेदन दायर किया। मौसियों का दावा था कि चूंकि जगदीश गोद लिया गया बच्चा है, इसलिए उसका मृतक की संपत्ति पर कोई वैध अधिकार नहीं है। इस प्रकार पारिवारिक संपत्ति का विवाद एक कानूनी लड़ाई में बदल गया।

जगदीश ने अपने बचाव में 25 अक्तूबर 1974 को किए गए गोदनामा को प्रमाण के रूप में पेश किया और खुद को मृतक का वैध दत्तक पुत्र घोषित करते हुए संपत्ति में अपने अधिकार का दावा किया। उसने तर्क दिया कि चूंकि उसे कानूनी रूप से गोद लिया गया था, इसलिए वह अपने दत्तक पिता की संपत्ति का एकमात्र वैध उत्तराधिकारी है। इस प्रकार यह मामला दत्तक अधिकारों और पारंपरिक संपत्ति कानूनों के बीच एक जटिल कानूनी संघर्ष बन गया।

कानूनी प्रक्रिया और अदालती कार्यवाही

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प्रारंभिक सुनवाई में चकबंदी अधिकारी ने जगदीश के पक्ष में आदेश पारित किया था। अधिकारी ने गोदनामा के दस्तावेजों की जांच करने के बाद यह माना कि जगदीश का दत्तक पुत्र के रूप में संपत्ति पर वैध अधिकार है। हालांकि मौसियों की ओर से इस निर्णय के विरुद्ध अपील दायर की गई, जिसे स्वीकार कर लिया गया और पहले के आदेश को पलट दिया गया। इसके बाद जगदीश ने पुनरीक्षण याचिका दायर की, लेकिन उसकी अपील को भी खारिज कर दिया गया।

अंततः जगदीश ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जहां इस मामले की विस्तृत सुनवाई हुई। निचली अदालतों के फैसलों को चुनौती देते हुए उसने अपने दत्तक अधिकारों की पुष्टि की मांग की। यह कानूनी लड़ाई कई वर्षों तक चली और इसमें विभिन्न स्तरों पर न्यायिक समीक्षा हुई। इस प्रक्रिया से यह स्पष्ट हुआ कि दत्तक अधिकारों से संबंधित कानूनी मामले कितने जटिल हो सकते हैं।

दोनों पक्षों की कानूनी दलीलें और तर्क

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जगदीश के अधिवक्ता ने अपनी दलीलों में स्पष्ट रूप से कहा कि एक जनवरी 1977 से पहले किए गए गोदनामा के लिए किसी प्रकार के रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि जब गोदनामा हुआ था, तब मृतक की पत्नी ने इसका कोई विरोध नहीं किया था, जो इस बात का प्रमाण है कि यह एक वैध और स्वीकृत प्रक्रिया थी। अधिवक्ता का कहना था कि निचली अदालत का आदेश रिकॉर्ड पर मौजूद सभी प्रमाणों पर उचित विचार किए बिना पारित किया गया था।

दूसरी ओर प्रतिवादी पक्ष यानी मौसियों के अधिवक्ता ने दलील दी कि गोद लेने की परिस्थितियां संदिग्ध थीं और उस समय उचित कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। उनका मुख्य तर्क यह था कि जब जगदीश को गोद लिया गया था, तब मृतक की पत्नी जीवित थी, लेकिन उससे उचित सहमति नहीं ली गई थी। इस कारण से उन्होंने जगदीश के संपत्ति अधिकार को चुनौती दी और कहा कि वह संपत्ति का वैध उत्तराधिकारी नहीं है।

हाई कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय और उसका महत्व

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हाई कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलों को सुनने और मामले के सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि एक जनवरी 1977 से पहले किए गए गोदनामा के लिए रजिस्ट्रेशन की कोई बाध्यता नहीं थी। कोर्ट ने यह भी माना कि जगदीश को कानूनी रूप से गोद लिया गया था और इसलिए वह अपने दत्तक पिता की संपत्ति का वैध उत्तराधिकारी है। न्यायालय ने उप निदेशक चकबंदी के विचाराधिकार को चुनौती देते हुए कहा कि पुराने गोदनामा के मामले में रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं है।

कोर्ट के इस फैसले का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह था कि जगदीश को मृतक की संपूर्ण चल और अचल संपत्ति का पूर्ण अधिकार दिया गया। यह निर्णय इस बात को स्थापित करता है कि गोद लिए गए बच्चे का संपत्ति पर वैसा ही अधिकार होता है जैसा कि जैविक संतान का होता है। इस फैसले ने दत्तक पुत्रों की कानूनी स्थिति को मजबूत किया है और भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित की है।

समाज पर प्रभाव और भविष्य की दिशा

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यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टि से बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इससे उन सभी परिवारों को राहत मिलेगी जो गोद लेने की प्रक्रिया से गुजरे हैं या गुजरने की सोच रहे हैं। यह फैसला दत्तक बच्चों की सामाजिक स्थिति को मजबूत बनाता है और उन्हें जैविक संतान के समान अधिकार प्रदान करता है। इससे समाज में गोद लेने की प्रक्रिया को बढ़ावा मिलेगा और अनाथ बच्चों को बेहतर भविष्य मिल सकेगा। यह निर्णय दिखाता है कि कानून प्रेम और देखभाल को जन्म से अधिक महत्व देता है।

Disclaimer

यह लेख केवल सामान्य जानकारी और शिक्षा के उद्देश्य से लिखा गया है। यह किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह नहीं है। गोद लेने या संपत्ति अधिकार से संबंधित किसी भी मामले में कृपया योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श लें। कानूनी प्रावधान समय-समय पर बदलते रहते हैं, इसलिए नवीनतम जानकारी के लिए संबंधित अधिकारियों से संपर्क करना उचित होगा।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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