ससुर की संपत्ति में दामाद का कितना होता है अधिकार, हाईकोर्ट ने किया साफ High Court Decision

By Meera Sharma

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High Court Decision

High Court Decision: भारतीय न्यायालयों में प्रतिदिन संपत्ति से संबंधित अनगिनत मामले आते हैं। पारिवारिक संपत्ति में अधिकार को लेकर रिश्तेदारों के बीच विवाद एक आम समस्या बन गई है। इन विवादों में सबसे जटिल प्रश्न यह होता है कि पारिवारिक संपत्ति में किसका कितना हक है और कौन सा रिश्ता कानूनी तौर पर संपत्ति में अधिकार दे सकता है। पिता की संपत्ति में सभी बच्चों को समान अधिकार मिलता है, यह तो स्पष्ट है, लेकिन विवाह के बाद बने रिश्तों में संपत्ति के अधिकार को लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति रहती है।

इसी संदर्भ में एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि ससुर की संपत्ति में दामाद का कितना अधिकार होता है। यह मुद्दा केवल कानूनी नहीं बल्कि सामाजिक और नैतिक पहलुओं से भी जुड़ा हुआ है। हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में इसी विषय पर एक महत्वपूर्ण मामला आया जिसने इस प्रश्न का स्पष्ट उत्तर दिया है। इस निर्णय से न केवल कानूनी स्पष्टता मिली है बल्कि भविष्य के मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल भी स्थापित हुई है।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में आया विशेष मामला

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मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में हाल ही में एक विशेष मामला सामने आया जिसमें भोपाल के एक निवासी ने अपने ससुर के मकान को खाली करने के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। इस मामले की जड़ें कई साल पुरानी थीं जब दामाद और उसकी पत्नी को ससुर ने अपने घर में रहने की अनुमति दी थी। ससुर ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 के तहत एसडीएम कोर्ट में अपील दर्ज की थी। इस अधिनियम के तहत बुजुर्गों की देखभाल न करने वाले परिवारजनों के विरुद्ध कार्रवाई की जा सकती है।

निचली अदालत ने दामाद को ससुर का मकान खाली करने का आदेश दे दिया था। इस आदेश के विरुद्ध दामाद ने पहले पुलिस में शिकायत दर्ज की और बाद में हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दामाद का तर्क यह था कि उसने घर के निर्माण में 10 लाख रुपये का योगदान दिया था और इसके प्रमाण के रूप में उसने बैंक स्टेटमेंट भी पेश किया था। यह मामला इस बात को स्पष्ट करता है कि केवल आर्थिक योगदान संपत्ति में स्वामित्व का आधार नहीं बन सकता।

पारिवारिक त्रासदी और बदलती परिस्थितियां

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इस मामले में एक दुखद मोड़ 2018 में आया जब ससुर की बेटी यानी दामाद की पत्नी की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई। बेटी की मृत्यु से पहले दामाद और उसकी पत्नी ससुर के घर में रह रहे थे और बदले में वे बुजुर्गों की देखभाल करने के लिए तैयार हुए थे। यह व्यवस्था पारस्परिक समझौते पर आधारित थी जिसमें आवास के बदले सेवा का प्रावधान था। हालांकि पत्नी की मृत्यु के बाद दामाद ने दूसरी शादी कर ली, जिससे पारिवारिक संबंधों में बदलाव आया।

दूसरी शादी के बाद दामाद ने अपने बूढ़े ससुर की देखभाल करना बंद कर दिया। यह स्थिति ससुर के लिए कष्टकारी थी क्योंकि वे अपनी बीमार पत्नी और अन्य बच्चों की देखभाल के लिए मकान की जरूरत रखते थे। दामाद के व्यवहार में आया यह बदलाव दिखाता है कि रिश्तों की बदलती प्रकृति संपत्ति अधिकारों को कैसे प्रभावित करती है। यह मामला यह भी स्पष्ट करता है कि विवाह से बने रिश्ते केवल तब तक प्रभावी रहते हैं जब तक वे नैतिक और कानूनी दायित्वों का निर्वहन करते हैं।

कानूनी तर्क और दोनों पक्षों की दलीलें

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दामाद के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल ने घर के निर्माण में 10 लाख रुपये का योगदान दिया था, इसलिए उसका संपत्ति पर अधिकार है। उन्होंने बैंक स्टेटमेंट को प्रमाण के रूप में पेश किया और कहा कि आर्थिक योगदान संपत्ति में हिस्सेदारी का आधार बनता है। दामाद का यह तर्क था कि चूंकि उसने निर्माण में पैसा लगाया है, इसलिए उसे मकान से बेदखल नहीं किया जा सकता। यह दलील संपत्ति कानून के तहत आर्थिक निवेश के आधार पर अधिकार की मांग करती थी।

दूसरी ओर ससुर के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि दामाद को केवल रहने की अनुमति दी गई थी, संपत्ति का स्वामित्व नहीं दिया गया था। ससुर ने स्पष्ट किया कि वह एक सेवानिवृत्त कर्मचारी है और उसे पेंशन मिलती है, लेकिन उसे अपनी बीमार पत्नी और बच्चों की देखभाल के लिए मकान की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि दामाद ने बेटी की मृत्यु के बाद अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं किया और दूसरी शादी के बाद बुजुर्गों की देखभाल बंद कर दी।

हाई कोर्ट का निर्णायक फैसला और इसका आधार

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हाई कोर्ट ने मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद एक स्पष्ट निर्णय दिया। न्यायालय ने माना कि दामाद के विरुद्ध माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 के तहत बेदखली का मामला दर्ज किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि संपत्ति का हस्तांतरण संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम के तहत नहीं किया गया था, इसलिए दामाद का कोई कानूनी अधिकार नहीं बनता। न्यायालय ने दामाद की दलील को खारिज करते हुए कहा कि केवल आर्थिक योगदान संपत्ति में स्वामित्व का आधार नहीं बन सकता।

कोर्ट ने यह भी माना कि ससुर को अपनी बीमार पत्नी और बच्चों की देखभाल के लिए मकान की आवश्यकता है और वह एक सेवानिवृत्त व्यक्ति है जिसकी आय सीमित है। न्यायाधीश ने दामाद की याचिका को पूर्णतः खारिज कर दिया और उसे 30 दिन के भीतर मकान खाली करने का आदेश दिया। यह निर्णय स्पष्ट करता है कि विवाह से बने रिश्ते अपने साथ दायित्व भी लाते हैं और जब ये दायित्व पूरे नहीं किए जाते तो अधिकार भी समाप्त हो जाते हैं।

निर्णय का व्यापक प्रभाव और सामाजिक संदेश

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इस निर्णय का सामाजिक और कानूनी दोनों स्तरों पर व्यापक प्रभाव है। यह फैसला स्पष्ट करता है कि ससुर की संपत्ति में दामाद का कोई स्वतः अधिकार नहीं होता, बल्कि यह रिश्ते की गुणवत्ता और दायित्वों के निर्वहन पर निर्भर करता है। यह निर्णय बुजुर्गों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा को प्राथमिकता देता है। माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण अधिनियम की प्रभावशीलता को यह मामला दर्शाता है। यह कानून बुजुर्गों को उनके अपने रिश्तेदारों द्वारा उपेक्षा या दुर्व्यवहार से बचाने के लिए बनाया गया है।

यह फैसला भविष्य के मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल स्थापित करता है और यह संदेश देता है कि पारिवारिक रिश्ते केवल अधिकार नहीं बल्कि जिम्मेदारियां भी लाते हैं। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि संपत्ति में अधिकार का आधार केवल आर्थिक योगदान नहीं बल्कि रिश्तों की नैतिकता और कानूनी दायित्वों का निर्वहन है। समाज में बुजुर्गों की स्थिति को मजबूत बनाने में यह निर्णय एक महत्वपूर्ण कदम है।

Disclaimer

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यह लेख केवल सामान्य जानकारी और शिक्षा के उद्देश्य से लिखा गया है। यह किसी भी प्रकार की कानूनी सलाह नहीं है। संपत्ति अधिकार या पारिवारिक विवाद से संबंधित किसी भी मामले में कृपया योग्य कानूनी सलाहकार से परामर्श लें। कानूनी प्रावधान समय-समय पर बदलते रहते हैं और हर मामले की परिस्थितियां अलग होती हैं।

Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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