चेक बाउंस होने पर कितने साल की होगी सजा, जानिये पैसे चुकाने के लिए कितना मिलता है समय cheque bounce

By Meera Sharma

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cheque bounce: आज के आधुनिक वित्तीय युग में सिबिल स्कोर किसी व्यक्ति की आर्थिक विश्वसनीयता का सबसे महत्वपूर्ण मापदंड बन गया है। जब भी कोई व्यक्ति बैंक या वित्तीय संस्थान से लोन लेने जाता है, तो सबसे पहले उसके सिबिल स्कोर की जांच की जाती है। एक अच्छा सिबिल स्कोर न केवल लोन की त्वरित स्वीकृति दिलाता है बल्कि कम ब्याज दरों पर लोन मिलने में भी सहायक होता है। इसके विपरीत, खराब सिबिल स्कोर की स्थिति में व्यक्ति को या तो लोन से वंचित रहना पड़ता है या फिर अधिक ब्याज दर पर लोन लेना पड़ता है। यही कारण है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने सिबिल स्कोर के प्रति सचेत रहना चाहिए।

सिबिल स्कोर सुधारने की चुनौतियां

एक बार सिबिल स्कोर खराब हो जाने के बाद इसे वापस सुधारना एक धैर्य और अनुशासन की मांग करने वाला कार्य है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति को कई नियमों का कड़ाई से पालन करना पड़ता है और निरंतर प्रयास करने होते हैं। सिबिल स्कोर सुधारने के लिए सबसे पहले अपनी वर्तमान वित्तीय स्थिति का सही मूल्यांकन करना आवश्यक है। इसके बाद सभी बकाया राशि का समय पर भुगतान करना, क्रेडिट कार्ड की सीमा का सही उपयोग करना और नए लोन या क्रेडिट कार्ड के लिए बार-बार आवेदन न करना जैसे नियमों का पालन करना होता है। यह एक लंबी प्रक्रिया है जिसमें धैर्य रखना अत्यंत आवश्यक है।

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सिबिल स्कोर सुधारने की समयसीमा

सिबिल स्कोर को सुधारने में लगने वाला समय मुख्यतः खराब स्कोर के कारणों और व्यक्ति के प्रयासों पर निर्भर करता है। सामान्यतः छोटी-मोटी चूक के कारण खराब हुए स्कोर को सुधारने में तीन से छह महीने का समय लग सकता है। हालांकि, यदि कोई गंभीर डिफॉल्ट या लंबे समय तक भुगतान न करने की स्थिति रही हो, तो स्कोर सुधारने में एक से दो साल या इससे भी अधिक समय लग सकता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि एक बार सुधार की प्रक्रिया शुरू करने के बाद निरंतरता बनाए रखना आवश्यक है। नियमित भुगतान और अनुशासित वित्तीय व्यवहार से धीरे-धीरे स्कोर में सुधार दिखाई देने लगता है।

चेक भुगतान की सुरक्षा और जोखिम

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डिजिटल भुगतान के इस युग में भी चेक एक महत्वपूर्ण और सुरक्षित भुगतान माध्यम माना जाता है। बड़ी राशि के लेन-देन में चेक का उपयोग आज भी व्यापक रूप से किया जाता है क्योंकि यह एक लिखित प्रमाण प्रदान करता है। हालांकि, चेक भुगतान में एक बड़ा जोखिम चेक बाउंस होने का होता है। जब किसी व्यक्ति के खाते में पर्याप्त राशि नहीं होती या अन्य तकनीकी कारणों से चेक वापस हो जाता है, तो यह स्थिति चेक जारीकर्ता के लिए गंभीर कानूनी परेशानी का कारण बन सकती है। इसलिए चेक जारी करते समय अत्यधिक सावधानी बरतना आवश्यक है।

चेक बाउंस की स्थिति में तत्काल कार्रवाई

चेक बाउंस होने की स्थिति में तुरंत कार्रवाई करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। सबसे पहले लेनदार को चेक बाउंस की सूचना चेक जारीकर्ता को देनी होती है। इसके बाद चेक जारीकर्ता के पास एक महीने का समय होता है जिसमें वह संपूर्ण राशि का भुगतान कर सकता है। यदि इस समयसीमा में भुगतान नहीं किया जाता है, तो लेनदार लीगल नोटिस भेजने का अधिकार रखता है। लीगल नोटिस के 15 दिन बाद भी यदि कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है, तो नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट 1881 की धारा 138 के तहत कानूनी कार्रवाई शुरू की जा सकती है।

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चेक बाउंस के गंभीर कानूनी परिणाम

चेक बाउंस एक दंडनीय अपराध माना जाता है जिसके गंभीर कानूनी परिणाम होते हैं। इस अपराध के लिए अधिकतम दो साल की कारावास की सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है। न्यायालय अपने विवेक के अनुसार केवल जुर्माना, केवल सजा या दोनों सजाएं एक साथ दे सकता है। इसके अतिरिक्त, न्यायालय चेक जारीकर्ता को मूल राशि के साथ-साथ ब्याज और अतिरिक्त जुर्माना भी भुगतान करने का आदेश दे सकता है। यह स्थिति न केवल आर्थिक नुकसान बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा को भी गंभीर रूप से प्रभावित करती है। इसलिए चेक जारी करते समय यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि खाते में पर्याप्त राशि उपलब्ध है।

बैंकिंग शुल्क और अतिरिक्त लागत

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चेक बाउंस होने पर केवल कानूनी परेशानी ही नहीं होती बल्कि तत्काल वित्तीय नुकसान भी झेलना पड़ता है। बैंक चेक बाउंस होने पर तुरंत पेनल्टी चार्ज करता है जो चेक जारीकर्ता के खाते से काट लिया जाता है। यह राशि विभिन्न बैंकों में अलग-अलग हो सकती है लेकिन आमतौर पर यह काफी महत्वपूर्ण होती है। इसके अलावा यदि मामला न्यायालय तक पहुंचता है, तो वकील की फीस, कोर्ट फीस और अन्य कानूनी खर्च भी वहन करने पड़ सकते हैं। यह सभी अतिरिक्त खर्च मूल राशि से कहीं अधिक हो सकते हैं।

चेक की वैधता और सावधानियां

चेक जारी करने और स्वीकार करने दोनों में सावधानी बरतना आवश्यक है। चेक जारी करने के बाद उसकी वैधता केवल तीन महीने तक रहती है। इस अवधि के बाद चेक अमान्य हो जाता है और बैंक इसे स्वीकार नहीं करता। चेक स्वीकार करने वाले व्यक्ति को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वह समय सीमा के भीतर चेक को बैंक में जमा करे। चेक बाउंस होने पर बैंक एक रसीद प्रदान करता है जिसमें बाउंस होने का कारण स्पष्ट रूप से लिखा होता है। यह रसीद आगे की कानूनी कार्रवाई के लिए महत्वपूर्ण दस्तावेज का काम करती है।

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Disclaimer

यह लेख केवल सामान्य जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से लिखा गया है और इसे वित्तीय या कानूनी सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। सिबिल स्कोर सुधारने या चेक बाउंस के मामलों में विशिष्ट परिस्थितियों के लिए उपयुक्त वित्तीय सलाहकार या कानूनी विशेषज्ञ से सलाह लेना आवश्यक है।

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Meera Sharma

Meera Sharma is a talented writer and editor at a top news portal, shining with her concise takes on government schemes, news, tech, and automobiles. Her engaging style and sharp insights make her a beloved voice in journalism.

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